दुर्गा सप्तशती को लाल चुनरी या वस्त्र से लपेटकर रखें। एक दिन में या फिर नौ दिनों में पूरे 13 अध्याय का पाठ पूर्ण करें। पाठ करते समय बीच में न उठें और न बोलें। पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से अनिष्ट का नाश होता है, घर में सुख शांति का वास होता है और गृह कलेश और धन संबंधित परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.
दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोवांछित फल प्रदान करता है और इसकी आवृत्तियां महान से महान संकटों को दूर करती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार दुर्गा सप्तशती का अनुष्ठान पूर्वक पाठ करने से अभीष्ट फल अवश्य प्राप्त होता है। जिस प्रकार यज्ञों में अश्वमेघ यज्ञ और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार समस्त स्तोत्र आदि की अपेक्षा दुर्गा सप्तशती श्रेष्ठ है। यह भुक्ति, मुक्ति दायक और पावन से भी पावन है। दुर्गा सप्तशती का सौ बार पाठ सभी सिद्धियों का प्रदाता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ के पहले अध्याय को करने से सभी चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
दूसरा अध्याय कोर्ट-कचहरी और अदालत से जुड़ी परेशानियों से छुटकारा दिलवाता है।
तीसरा अध्याय पढ़ने से दुश्मनों का नाश होता है।
चौथे अध्याय को पढ़ने से मां दुर्गा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होने की मान्यता है।
पांचवां अध्याय पढ़ने से मां दुर्गा की भक्ति, शक्ति और दर्शन का लाभ मिलता है।
छठे अध्याय को पढ़ने से व्यक्ति के अंदर का दुख, डर और दरिद्रता सभी दूर हो जाते हैं।
सातवां अध्याय पढ़ने से जातकों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
आठवां अध्याय किसी से मित्रता करने के लिए पढ़ा जाता है।
नौवां अध्याय संतान सुख या किसी खोई हुई चीज को पाने के लिए किया जाता है।
दसवां अध्याय पढ़ने से नौवें अध्याय के बराबर ही फल मिलता है।
ग्यारहवां अध्याय भौतिक सुख-सुविधाओं की पूर्ति करता है।
12वां अध्याय पढ़ने से जातक के मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
13वां अध्याय भक्ति और मोक्ष का फल देता है।
- दुर्गा सप्तशती के पाठ की तीन आवृत्तियां करने पर संकटों की शांति होती है।
- दुर्गा सप्तशती के पांच बार पाठ करने से ग्रहदोषों की शांति होती है।
- दुर्गा सप्तशती की सात आवृत्ति महाभय का निवारण करती है।
- दुर्गा सप्तशती की नौ आवृत्तियां व्यक्ति के प्राण संकट से मुक्ति और शांति प्रदान करती है।
- दुर्गा सप्तशती की ग्यारह आवृत्तियां राजा की कृपा यानि कि सरकार द्वारा सुख, सुविधा, ऐश्वर्य की प्राप्ति कराती है।
- दुर्गा सप्तशती की बारह आवृत्तियां काम्य सिद्धि एवं शत्रुओं का नाश करती है।
- दुर्गा सप्तशती का चौदह बार पाठ शत्रु आदि को वश में करता है।
- दुर्गा सप्तशती की पंद्रह आवृत्ति सुख और श्री प्रदान करती है।
- दुर्गा सप्तशती की सोलह आवृत्ति पुत्र, पौत्र, धन, धान्य की उपलब्धि प्रदान करती है।
- दुर्गा सप्तशती का सत्रह बार पाठ व्यक्ति को राजदंड के भय से मुक्त करता है।
- दुर्गा सप्तशती का अठारह बार पाठ बैर रखने वालों को परास्त करता है।
- दुर्गा सप्तशती की बीस आवृत्ति महासंकट से मुक्ति दिलाती है।
- दुर्गा सप्तशती की पच्चीस आवृत्ति किसी भी प्रकार के बंधन से साधक को मुक्त करती है।
- दुर्गा सप्तशती का सौ बार पाठ यानि सौ आवृत्ति, दुसाध्य रोग की शान्ति, हर प्रकार के भय का निवारण, त्रिविध उत्पात से रक्षा, विपत्तियों का नाश, धन लक्ष्मी की वृद्धि और अन्त में मोक्ष की प्राप्ति सुगम करती है अर्थात् समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाली है।
- दुर्गा सप्तशती की एक सौ आठ बार आवृत्ति सौ अश्वमेघ यज्ञ के फलों की प्राप्ति के साथ मनोकामना की पूर्ति करती है।