हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र माना गया है और पूजा अनुष्ठान में तुलसी के पत्तों को चढ़ाने की परंपरा है। भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण और हनुमान जी उपासना बिना तुलसी दल के पूर्ण नहीं मानी जाती है लेकिन भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल का उपयोग वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।
शिवलिंग पर केतकी के फूल को चढ़ाना वर्जित माना गया है। शिवपुराण की कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे रुष्ट होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिव को केतकी के फूल अर्पित किया जाना अशुभ माना जाता है।
शिव जी को कभी भी हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना गया है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है ऐसे में शिव जी की पूजा में हल्दी का उपयोग करने से पूजा का फल नहीं मिलता है। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।ये भी मान्यता है कि हल्दी की तासीर गर्म होने के कारण इसे शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना जाता है इसलिए शिवलिंग पर ठंडी वस्तुएं जैसे बेलपत्र, भांग, गंगाजल, चंदन, कच्चा दूध चढ़ाया जाता है।
सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना अशुभ माना जाता है।