संकट चतुर्थी का क्या महत्व है और उस दिन क्या करें  ?


प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की चतुर्थी को भगवान गणेश कीपूजा का विधान है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
श्री गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का अर्थ होता है- संकटों को हरने वाली। भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य को देने वाले हैं इनकी उपासना
शीघ्र फलदायी मानी गई है। कहते हैं कि जो व्यक्ति संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत करता है, उसके जीवन में चल रही सभी समस्याओं का समाधान निकलता है और उसके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
इसके अलावा इस दिन इन विशेष उपायों को करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कि संकष्टी चतुर्थी के दिन किन उपायों को करना चाहिए।

सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए श्री गणेश का पूजन करके तिल से हवन करें। आप चाहें तो किसी योग्य ब्राह्मण से हवन करा सकते हैं और अगर आपका इतना सामर्थ्य नहीं है तो आप स्वयं भी गाय के गोबर से बने कंडे पर
सफेद तिलों की 108 आहुति देकर घर में छोटा-सा हवन कर सकते हैं।

अपने कामों में सफलता सुनिश्चित करने के लिए आज गणपति जी के इस सफलता प्राप्ति मंत्र का जप करें। मंत्र है-‘गं गणपतये नमः‘ इस मंत्र का 11 बार जप करें और हर बार मंत्र बोलने के बाद भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करें।
इस प्रकार 11 बार मंत्र बोलते हुए, हर बार भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करें।

*भगवान गणेश जी का जलाभिषेक करें
*गणेश भगवान को पुष्प, फल चढ़ाएं और पीला चंदन लगाएं
*तिल के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं
*विकट संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ करें
*ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें
*पूरी श्रद्धा के साथ गणेश जी की आरती करें

पूजा विधि
सुबह उठकर पवित्र स्नान करें।
एक चौकी को सजाएं और उसपर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
विधि अनुसार अभिषेक करें।
इसके बाद उन्हें फल, फूल मिठाई, मोदक, सिंदूर दुर्वा घास आदि चीजें अर्पित करें।
गणेश मंत्र के साथ गणपति चालीसा का पाठ करें।
आरती से पूजा को समाप्त करें।
पूजा में हुई गलती के लिए क्षमा मांगे।
अगर आपकी जिंदगी में सुख-शांति की जगह उलझने और परेशानियों ने ले ली है, तो आज भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करके गणेश गायत्री मंत्र का जप करें। भगवान गणेश का गायत्री मंत्र इस प्रकार है-
‘एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।’

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